Tuesday, December 14, 2010

मैं अपने जीवन में न कोई अंतर्विरोध पाता हूं, न कोई पागलपन। यह सही है कि जिस तरह आदमी अपनी पीठ नहीं देख सकता, उसी तरह उसे अपनी त्रुटियां या अपना पागलपन भी दिखाई नहीं देता। लेकिन मनीषियों ने धार्मिक व्यक्ति को प्रायः पागल जैसा ही माना है। इसलिए मैं इस विश्वास को गले लगाए हूं कि मैं पागल नहीं हूं बल्कि सच्चे अर्थों में धार्मिक हूं। मैं वस्तुतः इन दोनों में से क्या हूं, इसका निर्णय मेरी मृत्यु के बाद ही हो सकेगा।

यंग, 14-8-1924, पृ. 267

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